Thursday, September 8, 2011

कितना मुश्किल है ....






कितना मुश्किल है ....
खुद को सहेजना
खुद को समेटना
उन भेदती हुयी
निगाहों से
जो जिस्म क्या
अंतस को भी
आर - पार
छील देती हैं .....
जिसके बाद -
सिर्फ शेष
रह जाता है ....
रिसता हुआ खून
और
ना भर पाने वाले जख्म ......!!!!



प्रियंका राठौर

12 comments:

  1. gahara dard samete hue ..marmsparshi rachna...

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  2. दर्द से लबरेज.........!!भूलने की सलाह देती हूँ .

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  3. शनिवार (१०-९-११) को आपकी कोई पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर है ...कृपया आमंत्रण स्वीकार करें ....aur apne vichar bhi den..

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  4. बिल्कुल सही चित्रण कि्या है…………बहुत सुन्दर्।

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  5. बहुत मर्मस्पर्शी ... बहुत सुंदर ।

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  6. नज़र मिला ना सके उससे उस निगाह के बाद ,
    वही है हाल हमारा जो हो गुनाह के बाद ||

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  7. मन की भावनाओं का सशक्त चित्रण....

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  8. मन की गहन वेदनायुक्त सुन्दर भावाभिव्यक्ति....

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