Friday, September 30, 2011

ना कर इतना ......





ना कर इतना
की झुक जाये
सर मेरा
तेरे सजदे के लिए ........

बामुश्किल -
सुलझ पाई थी
उन लम्हों से
ना कर इतना
की फिर
एक बार
वही कहानी दोहरा जाये ........

ठहराव में तेरे
डूब रहा है
अब ये मन इतना
कहीं टूट ना जाये
स्व मेरा
तुझमे लीन होने के लिए ........

ना कर इतना
ना कर इतना
की झुक जाये
सर मेरा
अब -
तेरे सजदे के लिए ..................



प्रियंका राठौर

12 comments:

  1. सर झुक जाने दो...

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  2. बहुत ही सुंदर भावनाओं से सजी रचना

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  3. ना कर इतना
    ना कर इतना
    की झुक जाये
    सर मेरा
    अब -
    तेरे सजदे के लिए ..................बहुत ही सुन्दर.....

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  4. ठहराव में तेरे
    डूब रहा है
    अब ये मन इतना
    कहीं टूट ना जाये
    स्व मेरा
    तुझमे लीन होने के लिए ........bhaut hi gahre bhaav...

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  5. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना , बधाई

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें

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  6. भाव पूर्ण .... किसी के सजदे में सिर झुकना भी तो प्यार ही है ...

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  7. आग कहते हैं, औरत को,
    भट्टी में बच्चा पका लो,
    चाहे तो रोटियाँ पकवा लो,
    चाहे तो अपने को जला लो,

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  8. बामुश्किल -
    सुलझ पाई थी
    उन लम्हों से

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  9. खूबसूरत रचना , बधाई

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  10. भावुक...सुन्दर...मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....

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  11. गहरे भाव लिए भावुक एवं सुंदर अभिवक्ती....समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

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