ना कर इतना
की झुक जाये
सर मेरा
तेरे सजदे के लिए ........
बामुश्किल -
सुलझ पाई थी
उन लम्हों से
ना कर इतना
की फिर
एक बार
वही कहानी दोहरा जाये ........
ठहराव में तेरे
डूब रहा है
अब ये मन इतना
कहीं टूट ना जाये
स्व मेरा
तुझमे लीन होने के लिए ........
ना कर इतना
ना कर इतना
की झुक जाये
सर मेरा
अब -
तेरे सजदे के लिए ..................
प्रियंका राठौर
सर झुक जाने दो...
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भावनाओं से सजी रचना
ReplyDeleteना कर इतना
ReplyDeleteना कर इतना
की झुक जाये
सर मेरा
अब -
तेरे सजदे के लिए ..................बहुत ही सुन्दर.....
बहुत सुन्दर वाह!
ReplyDeleteठहराव में तेरे
ReplyDeleteडूब रहा है
अब ये मन इतना
कहीं टूट ना जाये
स्व मेरा
तुझमे लीन होने के लिए ........bhaut hi gahre bhaav...
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना , बधाई
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें
भाव पूर्ण .... किसी के सजदे में सिर झुकना भी तो प्यार ही है ...
ReplyDeleteआग कहते हैं, औरत को,
ReplyDeleteभट्टी में बच्चा पका लो,
चाहे तो रोटियाँ पकवा लो,
चाहे तो अपने को जला लो,
बामुश्किल -
ReplyDeleteसुलझ पाई थी
उन लम्हों से
खूबसूरत रचना , बधाई
ReplyDeleteभावुक...सुन्दर...मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....
ReplyDeleteगहरे भाव लिए भावुक एवं सुंदर अभिवक्ती....समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
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