साभार : दैनिक जागरण ......
यादों की दुनिया कभी तो सपनीली होती है लेकिन कई बार यादों के शूल मन में इस कदर चुभ जाते हैं कि जिंदगी खत्म सी लगने लगती है। समय थम जाता है और आगे बढने के रास्ते नजर आने बंद हो जाते हैं। किसी के साथ कोई खास घटना घट जाती है, जिसकी यादों में जिंदगी फंस कर रह जाती है तो कुछ लोग आदतन यादों के भंवर में उलझे रह जाते हैं। मनोवैज्ञानिकों से बातचीत के आधार पर कहें तो लगभग 80 फीसदी लोगों की पर्सनैलिटी पर अतीत की छाप दिखती है। पर यह स्थिति किसी भी सूरत में इंसान के लिए अच्छी नहीं है।
हरिवंश राय बच्चन ने अपनी पहली पत्नी की मृत्यु के बाद जो बीत गई सो बात गई नामक रचना लिखी। शायद यह उनकी ओर से अतीत से निकलने का एक प्रयास था। अतीत से निकलना भले ही कितना मुश्किल क्यों न लगता हो लेकिन हर नजरिये से यही उचित माना जाता है। व्यावहारिकता की दृष्टि से देखें तो समय किसी के लिए नहीं रुकता, भले ही आप अतीत की यादों में कितने ही क्यों न जकडे हों। इसके नुकसान भी आपको झेलने पड सकते हैं। पहला नुकसान तो यह है कि जब तक आप पिछला छोड नहीं देते, आगे बढना और भी मुश्किल हो जाता है। दूसरा यह कि आप अतीत के साथ रहकर खुद को और पिछडा बना लेते हैं।
नई दिल्ली स्थित मूलचंद एंड मेडिसिटी हॉस्पिटल की क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. गगनदीप कौर कहती हैं, साइकोलॉजी के अनुसार अकसर वे लोग बीते समय की घटनाओं को नहीं भुला पाते जिनका ईगो सिस्टम कमजोर होता है। देखा जाता है कि ऐसे लोग अपने बारे में और अपने बैकग्राउंड के बारे में हीन भावना से ग्रस्त होते हैं। उनमें वास्तविकता को कु बूल करने की हिम्मत नहीं होती। अतीत को भुला न पाना दरअसल दूसरे शब्दों में वास्तविकता से दूर भागने जैसा ही है। डॉ. गगनदीप कहती हैं, यादों को भुलाने में इंसान के कोपिंग मकैनिज्म का अहम रोल होता है। कोपिंग मकैनिज्म में दुख सहने की शक्ति के साथ उससे उबरने के तरीके, सभी कुछ शामिल हैं। कोपिंग मकैनिज्म एक लंबे समय में विकसित की जाने वाली भावना है। डॉ. गगनदीप के अनुसार अकसर वे लोग यादों के दुष्प्रभावों का शिकार होते हैं जिन्हें बचपन से ओवरप्रोटेक्शन मिलती है। वह कहती हैं, बच्चे की परवरिश के दौरान माता-पिता कई बार इतने प्रोटेक्टिव हो जाते हैं कि उन्हें जिंदगी की असलियतों से दूर करने की कोशिश करते रहते हैं। एक उम्र तक तो अभिभावक बच्चों को बचा सकते हैं, लेकिन उसके बाद उनका सुरक्षा कवच हटते ही जब बच्चे को दुनिया के थपेडे पडते हैं तो वह संभल नहीं पाता। भले ही तब तक वह बडा ही क्यों न हो चुका हो। गौरतलब है कि कुछ स्पेशल केसेज में ये कॉन्सेप्ट लागू नहीं होता। किसी के साथ कोई बडी अनहोनी हो जाए तो जाहिर है कि उसका उस घटना से उबरना मुश्किल ही होगा। डॉ. गगनदीप कहती हैं, मान लीजिए, किसी की अकेली संतान की मृत्यु उसकी शादी के दिन हो जाए तो ये एक अपवादस्वरूप बात हो गई। ऐसे केस में यादों से निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है और इंसान को बहुत समय भी लग जाता है।
अतीत भुलाने का मतलब
1. अतीत भुलाने का मतलब है उन स्थितियों को कुबूल कर लेना जिन्होंने आपको आहत किया हो। यह मान लेना कि आपने उन स्थितियों में वह किया जो आप कर सकते थे और कुबूल कर लेना कि अब उसमें कोई सुधार नहीं किया जा सकता।
2. अतीत को भुलाने का मतलब खुद को बीते वक्त में की हुई गलतियों के लिए माफ कर देना है। उस उधेडबुन से बाहर निकलना कि आप क्या कर सकते थे या क्या नहीं करना चाहिए था। अगर आप अपनी गलतियों से डील कर रहे हैं या कोई हताशा का दौर देख रहे हैं तो आगे बढने के लिए खुद को माफ करना जरूरी हो जाता है।
2. अतीत को भूलने का मतलब यह भी है कि आपका अपनी भावनाओं पर नियंत्रण है और आप खुद को बीते हुए दुखद समय से बाहर निकालने के लिए वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं। किसी दुखद रिश्ते या घटना के गम से बाहर निकलकर जीवन को आगे बढाना चाहते हैं।
4. अतीत भुलाने का मतलब है कि आप समय के चक्के की रफ्तार को कुबूल करते हैं।
5. अतीत भुलाने का मतलब है कि आप नए कनेक्शंस बना रहे हैं। हालांकि इसके लिए जरूरी नहीं कि आप नए लोगों से संपर्क में आएं बल्कि जरूरी यह है कि आप नए ढंग से रिश्तों को डील करें। अपने दोस्तों के साथ आउटिंग पर जाना शुरू करें या अपने पडोसियों के साथ सोशलाइज करें।
6.अतीत भूलने का मतलब है कि आप दुनिया को नए नजरिये से देखने को तैयार हैं।
निकलें अतीत के शिकंजे से
1. जीवन के नए लक्ष्य तलाशें- जीवन में नए फोकल पॉइंट्स ढूंढें, तभी आप अतीत के चक्रव्यूह से निकल कर नई दिशा में अपनी सोच को केंद्रित कर सकते हैं। मनोवैज्ञानिक समीर पारेख कहते हैं, फर्ज कीजिए किसी स्त्री ने अपने बच्चे को खो दिया हो और उस ट्रॉमा से निकलने के लिए वह कोई क्रेश या बच्चों से संबंधित एनजीओ खोल ले। इस तरह से वह स्त्री खुद को व्यस्त रखते हुए अपने जीवन में नए रास्ते तलाश सकती है।
2. कुबूल करना सीखें- आमतौर पर हम अतीत से इसलिए चिपके रह जाते हैं क्योंकि हम उसे कुबूल नहीं कर पाते। यदि आपके मन पर कोई बात लग गई हो तो उसके बारे में गहराई से सोचें और कुबूल करें कि वाक्या गुजर चुका है। अब आप कुछ नहीं कर सकते और आगे बढ जाएं।
3. जूझना छोड दें- कोई बुरी घटना होने के साथ ही मन में उधेडबुन सी शुरू हो जाती है। अतीत से निकलना है तो उस उधेडबुन को छोड दें।
4. हादसों से सीखें- मानना सीखें कि जीवन की सभी घटनाएं शिक्षाप्रद होती हैं और उनसे शिक्षा लेना सीखें।
कहावत है, बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि ले। यानी अतीत भुला कर भविष्य की ओर ध्यान केंद्रित करें। जिंदगी का बहाव किसी के लिए नहीं रुकता। इसमें बहना ही प्रकृति है। जितनी जल्दी यह मान लिया जाए, उतना ही खुद के लिए, अपने आसपास वालों के लिए और अपने माहौल के लिए अच्छा है।
..तो जीवन के भंवर में फंसा रहता: इमरान खान
मैं शुक्रगुजार हूं उस इंसान का जिसने मुझे जीवन में आगे बढना सिखाया। अगर मुझे अतीत भुलाना न आता होता तो मैं जिंदगी के भंवर में ही फंस कर रह गया होता। जीवन में इतना कुछ हुआ है कि भुला कर आगे बढने के अलावा मेरे पास कोई और विकल्प ही नहीं बचा। मेरा जन्म अमेरिका में हुआ। पिता अनिल पॉल और मां नुजहत खान का तलाक तब हुआ जब मेरे तसव्वुर में उनकी यादें बस भी नहीं पाई थीं। उस पल का तो मुझे कुछ भी याद नहीं, लेकिन उसके बाद की घटनाएं जिंदगी और मेरे दिल पर ट्रॉमेटिक असर छोड गई। अपने माता-पिता के बीच के अलगाव को समझने लायक मेरी उम्र नहीं थी, लेकिन उसके बाद की घटनाओं को मैं समझता था। उनके अलगाव के बाद हम इंडिया आए और हम दादा-दादी के साथ रहने लगे। जैसे-जैसे बडा होता गया, छोटी-बडी घटनाओं के साथ यह अहसास होता गया कि दूसरे बच्चों की तरह मेरे अब्बाजान नहीं हैं। वक्त तो हर जख्म को भर ही देता है, लेकिन एक बच्चे के लिए उसके पिता का साथ न होना बडा दुखद होता है। मेरी मां, मेरे मामू (अभिनेता आमिर खान) और मेरे परिवार ने बडे प्यार-दुलार से मेरी परवरिश की। मुझे किसी कमी का अहसास नहीं होने दिया, इसलिए मेरे जीवन और करियर पर मेरे मामू का बेहद प्रभाव रहा है। अमेरिका से लौटने के कुछ वर्षो बाद मुझे मुंबई के बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल में दाखिल करवाया गया, मैं उस स्कूल में अच्छी तरह रम गया। मेरे कई दोस्त बन गए। टीचर्स से गहरा लगाव हो गया, लेकिन मुझे इंडिपेंडेंट और डिसिप्लिंड लाइफ की आदत हो, इसलिए मेरे परिवार वालों ने मुझे ऊटी के बोर्डिग स्कूल में दाखिला दिला दिया। स्कूल के खुलने तक मुझे इस बारे में जानकारी नहीं थी। मैं तब चौथी से पांचवीं कक्षा में जाने वाला था। मुझे जब पता चला कि मुझे ऊटी जैसी अंजान जगह में अकेले रहना है, उस वक्त मैंने बहुत कोशिश की कि मैं ऊटी न जाऊं। लेकिन मुझे जाना ही पडा। मैं वहां बीमार पडा, होमसिक फील करता रहा। वह अनुभव मेरे लिए बेहद डरावना था। लेकिन वक्त के साथ कौन नहीं उबर जाता! मेरी जिंदगी की गाडी भी चलती ही रही। एक वाक्या अभी पिछले दिनों का ही है। मैं अपनी फिल्म के प्रमोशन ट्रिप पर था। मुंबई एयरपोर्ट पर जा रहा था। मेरी कार के पीछे वाली कार में एक परिवार ने मुझे देख लिया। वे मुझे देखकर बहुत खुश हो गए और मेरी तस्वीरें लेनी शुरू कर दीं। हम लोग उस वक्त हाइवे पर थे। वहां स्टियरिंग व्हील से छेडछाड करना बेहद खतरनाक हो सकता था, लेकिन शायद उनका ड्राइवर इस बात को भूल गया। वह भी अपने मोबाइल से मेरी तस्वीरें लेने लगा। वही हुआ जिसका मुझे डर था। उनकी गाडी दूसरी गाडी से टकरा गई और भयंकर एक्सीडेंट हुआ। उस हादसे का सदमा मेरे दिलो-दिमाग से उतरता ही नहीं। मुझे आज भी लगता है कि मेरे कारण वह हादसा हुआ, लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकता। जीवन चलता रहता है, चाहे आप पास्ट भूलें या उसी में जीते रहें।
यादों से लडना सीखा है मैंने: मंदिरा बेदी
सेलब्रिटी होने के फायदे हैं तो नुकसान भी कम नहीं हैं। एक आम इंसान जितनी इज्जत या जलालत की उम्मीद भी नहीं कर सकता, सेलब्रिटी को आसानी से मिल जाती है। सन 2007 में एक्स्ट्रा इनिंग्स होस्ट करने का मौका मिला था। क्रिकेट फैन होने के नाते यह मेरे लिए एक बडी बात थी और इसके लिए मैंने खास तैयारियां भी की थीं। लेकिन लोगों को शायद मेरी ये तैयारियां पसंद नहीं आई। हर तरफ मेरी साडियों और ब्लाउजेज के चर्चे थे। किसी शख्स ने यहां तक लिखा मंदिरा बेदी शोइंग बूब्स इन एक्स्ट्रा इनिंग्स। मेरे लिए यह बहुत बडी बात थी। मेरी तिरंगे वाली साडी को लेकर तो देश में बवाल ही मच गया। लोगों ने शो में मेरी मौजूदगी को बडे ही नकारात्मक तरीकेसे लिया। शायद आलोचकों के लिए एक लडकी का क्रिकेट पर बातचीत करना हजम नहीं हुआ। लेकिन मुझे पता है कि मैं वहां सिर्फ और सिर्फ अपने क्रिकेट प्रेम के कारण थी। दरअसल आलोचना मुझे बुरी नहीं लगी, लोगों खासकर मीडिया का आलोचना करने का अंदाज मुझे पसंद नहीं आया। वहां मेरी गरिमा पर चोट किया गया था। शायद मेरे जीवन का सबसे बडा हादसा था वह जब मैं अपना कॉन्फिडेंस खो बैठी थी। मुझे उससे उबरने में मेरे पति ने बहुत मदद की। सच कहूं तो यह स्टेज आ गई थी कि मैं मीडिया को फेस भी नहीं करना चाहती थी। लेकिन हमारे प्रफेशन में मीडिया से मुक्ति मिलना आसान नहीं। उस दौर में मैंने पब्लिक गैदरिंग्स में आना-जाना छोड दिया। जहां भी जाती, हर तरफ सिर्फ यही बातें होतीं। कई बार लगता कि लोग मुंह पर ही बोलना न शुरू कर दें। इस घटना में मेरा कॉन्फिडेंस बुरी तरह आहत हुआ और मुझमें दुनिया को फेस करने का साहस नहीं रहा। कई बार लगा की मेरी शख्सीयत यहीं खत्म हो गई। लेकिन मेरे पति राज ने मेरा पूरा साथ दिया। उन्होंने मुझे आगे बढने का आत्मविश्वास दिया। वह अकसर कहते रहते थे कि अगर मेरी शख्सीयत इन बातों से प्रभावित होने लगी तो मैं आगे बढ ही नहीं सकती। यह वाक्य मेरे लिए जादुई साबित हुआ। आज बडी से बडी आलोचना हो जाए, मैं सब कुछ झेल सकती हूं। मुझे खुद पर पूरा भरोसा है।
यादों ने बदल दिया स्वभाव: जूही चावला
सभी जानते हैं कि मैं खुशमिजाज नेचर की हूं। मैं हैप्पी गो लकी सोच पर विश्वास करती हूं लेकिन मेरे जीवन में ऐसी चंद घटनाएं हुई हैं जिन्होंने मुझे अपना टेंपरामेंट बदलने पर मजबूर कर दिया। मेरी मां मोना चावला मेरे लिए फ्रेंड-फिलॉसॉफर और गाइड थीं। उन्हीं की प्रेरणा से मैंने जीवन में सफलता हासिल की। वह मेरे जीवन का पारस थीं, जिनके छूने मात्र से मैं सोना होती चली गई। उनका मेरे जीवन से जाना मेरी जिंदगी का सबसे बुरा अनुभव था। धर्मा प्रोडक्शंस के बैनर तले बनी फिल्म डुप्लीकेट की शूटिंग के लिए मैं शाहरुख, सोनाली बेंद्रे, फरीदा जलाल तथा करण जौहर सभी विदेश गए थे। मेरे साथ मेरी मॉम भी थीं। वह अनुशासन की बडी पक्की थीं। आदत के अनुसार सुबह-सुबह उठकर वॉक के लिए जाने की तैयारी की। मैं तब नींद में थी। मॉम ने मुझे कहा भी कि मैं उनके साथ चलूं पर नींद अनकंट्रोलेबल हो रही थी। इसलिए मैं उनके साथ नहीं गई। मैंने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि रात में हुई उनसे गपशप आखिरी मुलाकात बन जाएगी। वह वॉक के लिए तैयार हुई और उसके आधे घंटे में ही वह हादसा हो गया। दरअसल मॉम चल रही थीं और किसी कार ने उन्हें पीछे से मार दिया। ड्राइवर भी भाग गया। हम लोग सोचते हैं कि भारत में एक्सीडेंट का ज्यादा खतरा होता है, लेकिन इस अनहोनी ने मेरी सोच बदल दी। मेरी जिंदगी का नक्शा बदल गया। परदेस में मैं अकेली हो गई थी हमेशा के लिए। उस हादसे से उबरना मेरे लिए आसान नहीं था। मैंने जिंदगी का उससे बुरा पहलू कभी सपने में भी नहीं सोचा था। कैसे निकली हूं उस दौर से ये मैं ही जानती हूं। जिंदगी कभी रुकती नहीं, चाहे आपकी यादें आपके साथ रहें या समय के साथ धुंधली हो जाएं। जिंदगी बढती गई, करियर में कई मुकाम आए और निजी जीवन में भी। जय से मुलाकात हुई और फिर शादी। पारिवारिक जीवन में जुडने के बाद जीवन का नजरिया बदला और मायने भी। कुछ साल पहले अपने परिवार के साथ फुकेत गई थी। उस वक्त सुनामी आया था। जहां हम रुके थे, उस होटल तक में सुनामी की लहरों ने तबाही मचाई। सब जिंदा बच गए, लेकिन बेहद दर्दनाक था वह हादसा। मेरी आंखों के सामने मेरे पति और बच्चों को कुछ हो जाता तो क्या होता! इस बात की तो मैं कल्पना भी नहीं करना चाहती। हालांकि उस घटना को कई बरस गुजर चुके हैं लेकिन वह ट्रॉमा आज भी मेरे दिल से गया नहीं। आज भी अगर किसी तूफान की खबर सुनती हूं तो डर लगने लगता है। ऐसे अनुभवों ने मेरे जीवन का अच्छा समय छीन लिया। आज भी मॉम का हादसा याद आ जाए तो संभलना मुश्किल हो जाता है। कुछ यादें कभी भुलाई नहीं जा सकतीं। बस इंसान मजबूरी में जिंदगी के साथ चलता रहता है।
अतीत भुलाना मेरे लिए है बेहद मुश्किल: प्राची देसाई
मेरे जैसे सेंसिटिव लोगों के लिए कुछ भी भुला पाना या किसी भी स्थिति से उबर पाना आसान नहीं होता। दुख हो या सुख, मैं हर बात लंबे समय तक दिल में बसाए रखती हूं। बहुत ज्यादा तकलीफ होती है इस आदत से। दिल में कोई भी बात लंबे समय तक घर कर जाए तो जीवन में आगे बढना मुश्किल होता है। इंसान उसी बात के बारे में हमेशा सोचता रहता है। ऐसा ही कुछ हुआ था जब मैं पुणे में 12वीं क्लास में पढती थी। मेरी एक बर्मीज दोस्त थी मम्पी। डेढ साल हम क्लास में और होस्टल में साथ रहे। पल-पल का साथ था हमारा। खाने-पीने से लेकर घूमना और बदमाशियां करना, सब कुछ मम्पी के साथ ही करती थी मैं। मम्पी मेरा बहुत ध्यान भी रखती थी। होस्टल में वह मेरी दूसरी केयरटेकर थी। अचानक एक दिन मुझे पता चला कि मम्पी के घर में कुछ प्रॉब्लम है जिसके कारण उसे मिड सेशन क्लास छोड कर जाना पडा। कुछ ऐसा हुआ कि मम्पी जाने के वक्त मुझसे मिल भी नहीं सकी। मेरे लिए फाइनल एग्जाम देना भी बहुत मुश्किल हो गया था। किस्मत ने मेरा साथ दिया तो मैं पास हो गई थी, वरना मुझे बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि मैं आगे बढ सकूंगी। मुझे सब समझाते थे, लेकिन मुझे बहुत समय लगा यह बात कुबूल करने में कि मम्पी अब मेरे साथ नहीं है। मुझे बहुत ज्यादा बुरा लगता था वह दौर। जैसे-तैसे एग्जाम खत्म हुए और मैं घर वापस आ गई। उसके बाद मैंने काम करना शुरू कर दिया। व्यस्तता बढ गई तो ध्यान भी बंट गया। लेकिन मम्पी की याद आज भी मेरे दिल में है। ऐसे ही कुछ खुशियों के पल भी होते हैं जिनसे उबर पाना मेरे लिए आसान नहीं होता। रॉक ऑन का हैंगओवर मुझे काफी दिनों तक रहा। फिल्म रिलीज होकर सफल हो गई, लेकिन मैं उसी दौर में लंबे समय तक जीती रही। फिल्म की शूटिंग खत्म हुए लंबा समय गुजर गया, लेकिन मैं सेट पर होती मौज-मस्ती को रोजाना मिस करती थी। पास्ट को भुला देना आसान नहीं होता मेरे लिए।
शर्मसार कर देती हैं वो यादें: समीरा रेड्डी
मेरा काम ऐसा है कि मुझे बहुत ट्रैवेल करना पडता है इसलिए अनुभव भी कुछ ज्यादा ही होते हैं। कुछ ऐसी यादें हैं जिन्हें सोचकर दिल खुश हो जाता है और कुछ ऐसी यादें भी हैं जिनके जहन में आते ही शर्मसार हो उठती हूं। मैं और मेरा परिवार ऐसी की कुछ यादों से आज भी घबरा उठता है। दरअसल कुछ साल पहले तक मुझे नींद में चलने की बीमारी थी। एक बार की बात है कि मैं शूटिंग करने के लिए गोवा गई थी। मेरे साथ वाले कमरे में याना गुप्ता ठहरी हुई थी। शूटिंग पैक अप करने के बाद सभी यूनिट मेंबर्स ने खाना खाया और अपने-अपने रूम्स में पहुंच गए। मैं भी थक कर अपने रूम में सो गई, लेकिन आधी रात को करीब दो-ढाई बजे जब मेरी आंख खुली तो मैंने खुद को किसी दूसरे के कमरे में पाया। और सारा होटल स्टाफ मुझे घेरे खडा था। अपनी नींद में चलने की आदत के कारण मैं दूसरे के कमरे का दरवाजा खोलने की कोशिश कर रही थी। मेरे रूम से दूसरे रूम में एक दरवाजा खुलता था। पहले तो मैंने उसका लॉक खोलने की कोशिश की। जब नहीं खुला तो नींद में ही जोर आजमाइश भी कर डाली। दरवाजा तो खुल गया, लेकिन साथ ही मेरी नींद भी। देखा कि सारा स्टाफ मुझे अजीब निगाहों से देख रहा था। मेरे लिए बेहद शर्मनाक था वह वाक्या। काफी दिनों तक मैं यूनिट वालों से भी नजर नहीं मिला सकी। कुछ यूनिट वालों ने इस बात का मजाक इस ढंग से उडाया कि मेरे लिए बहुत एंबैरेसिंग हो गया था। मेरी इसी आदत की वजह से कुछ साल पहले मेरे साथ एक बडा हादसा होते-होते बचा। आधी रात को नींद से उठकर चलते-चलते खिडकी के पास पहुंची। मैं खिडकी से कूदने वाली थी, लेकिन किस्मत अच्छी थी कि मेरे पेरेंट्स समय पर आ गए और मुझे वापस ले जाकर अपने रूम में सुला लिया। इसके बाद उन्होंने हमारे सारे रूम्स के बैलकनी और खिडकियों में बैरिकेड्स लगा दिए, ताकि मैं दोबारा नींद में चलते हुए किसी दुर्घटना की शिकार न हो जाऊं। हमारा घर नौवीं मंजिल पर है। सोच कर भी दिल दहल जाता है कि अगर उस दिन मेरे पेरेंट्स न आए होते तो मेरा क्या होता! अपने इस डर से बचपन से जूझती आई हूं। किसी हादसे के बाद दिल में डर और बढ जाता है, लेकिन मैं कुछ कर नहीं सकती। रात की बात को रात में भुलाकर दिन में नई तरह से शुरुआत करने की कोशिश करती हूं। अब इस समस्या से निजात मिल चुकी है, लेकिन पुराने वाकये सोच कर आज भी रूह कांप जाती है। मेरी बहन सुषमा ने मुझे मेडिटेशन सिखाया जिससे इस बीमारी से उबरने में मुझे मदद मिली। शुक्र है कि मैं अब इससे बाहर हूं।
उन यादों में जीना मेरी जरूरत है: राहुल देव
मैं मानता हूं कि समय के साथ पास्ट को भुलाकर लोग आगे बढ सकते हैं लेकिन जीवन में सब कुछ भुलाया नहीं जा सकता। कुछ लमहे ऐसे होते हैं जिनके साथ हम हमेशा जीना चाहते हैं। मेरी पत्नी रीना अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उसके साथ बिताए लमहों को मैं कभी नहीं भुला सकता। वह भले ही आज मेरे जीवन में फिजिकली मौजूद नहीं हैं, लेकिन वह हर पल मेरे साथ रहती हैं। रीना कैंसर से बीमार थीं और पिछले साल मुझे और सिद्धार्थ को छोड कर चली गई। रीना मेरे जीवन के हर एक पल में आज भी उसी तरह बसी हैं जैसे पहले थीं। बहुत बार लोगों ने कहा कि मुझे आगे बढना चाहिए, लेकिन मुझे इसकी जरूरत महसूस नहीं हुई। हमारी शादी को ग्यारह साल हुए हैं और सिद्धार्थ हमारी जिंदगी का एक अहम हिस्सा है। रीना सिर्फ मेरी पत्नी ही नहीं, मेरे जीवन का आधार थीं। सिद्धार्थ के लिए अब मैं मां और बाप दोनों का रोल अदा कर रहा हूं। पूरी कोशिश करता हूं कि सिद्धार्थ को वह सब कुछ दे सकूं जो उसे अपने मां-बाप से मिलना चाहिए। लेकिन मैं रीना की जगह नहीं भर सकता। मैं उसकी यादों से निकल सकता हूं या नहीं, यह बात दीगर है। मैं उसकी यादों से निकलना ही नहीं चाहता। कहते हैं जीवन आगे बढने का नाम है लेकिन मेरी जिंदगी उन्हीं पलों में ठहर-सी गई है। मेरे लिए मेरा पास्ट कोई बोझ नहीं जिसे मैं भुला दूं। न ही उसकी वजह से मेरी जिंदगी में कोई परेशानी आ रही है। वह आज भी मेरी जिंदगी की सबसे बडी ताकत है। सिद्धार्थ और रीना मेरी दुनिया हैं। यादों को भुला देना शायद जरूरी होता होगा, लेकिन मुझे यह उतना जरूरी नहीं लगता। रीना की कमी तो मेरे जीवन में हमेशा ही रहेगी लेकिन मेरी जिंदगी उसकी यादों के सहारे भी कट रही है। हां, इस विषय पर बात करना मुझे दुखी करता है, लेकिन उन यादों में जीना मेरी जरूरत है। मेरी जिंदगी के हर पल में उसकी यादें रमी हैं और उनसे छुटकारा पाने की कोशिश करूंगा तो शायद जी नहीं सकूंगा।
इंटरव्यू दिल्ली से दीक्षा पी गुप्ता और मुंबई से पूजा सामंत
दीक्षा पी. गुप्ता
साभार : दैनिक जागरण ......
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