'विचार प्रवाह'
Friday, October 8, 2010
अस्तित्व
धीरे - धीरे सांसें
हो रही जुदा
शरीर से
कैसा ये मंजर है ,
अस्तित्व के खत्म होने का !
बूंद - बूंद रिसना
आह ! का आर्तनाद
स्वयं का चीत्कार
लेकिन
फिर भी
धीरे - धीरे सांसें
हो रही जुदा
शरीर से !!!
प्रियंका राठौर
1 comment:
संजय भास्कर
October 10, 2010 at 9:47 PM
सुंदर प्रस्तुति....
नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।
Reply
Delete
Replies
Reply
Add comment
Load more...
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
सुंदर प्रस्तुति....
ReplyDeleteनवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।