Friday, October 8, 2010

अस्तित्व






धीरे - धीरे सांसें
हो रही जुदा
शरीर से
कैसा ये मंजर है ,
अस्तित्व के खत्म होने का !
बूंद - बूंद रिसना
आह ! का आर्तनाद
स्वयं का चीत्कार
लेकिन
फिर भी
धीरे - धीरे सांसें
हो रही जुदा
शरीर से !!!




प्रियंका राठौर 

1 comment:

  1. सुंदर प्रस्तुति....

    नवरात्रि की आप को बहुत बहुत शुभकामनाएँ ।जय माता दी ।

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