Monday, October 18, 2010

ख्वाब






जितनी दूरी उतने ख्वाब
फिर भी ना जाने क्यों दिल उदास !
खोने की कोशिश में पाने का अहसास
दिन और रात के संग्राम में
भोर के तारे की आवाज !
फिर भी ना जाने क्यों
म्रत्यु में जीवन का आभास !
डूबती उतरती सांसों में
कहीं एक करुणा भरा आर्तनाद !
फिर भी ना जाने क्यों
गुमनाम अँधेरे में भी रास्तों की तलाश !
जितनी दूरी उतने ख्वाब
फिर भी ना जाने क्यों दिल उदास ......!!



प्रियंका राठौर







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