यह होने न होने का क्रम, सूक्ष्म से अति सूक्ष्म , दीर्घ से अति दीर्घ , क्षण में प्रवाहमान , लेकिन स्थायी कहीं - अनंत से अधिक !! बहुत दार्शनिक अंदाज़ में लिखी कविता है , बधाई !
प्रियंका जी कविता के साथ आपने जो तस्वीर लगाई है वह बहुत ही भावपूर्ण है छोटी सी नन्ही सी बच्ची आँखों में कुछ खुशियों के साथ हसरत भरी नजरे निहारती देखती और सिर पर गुजरात की कलाकारी किये हुए मटकी बहुत ही भावपूर्ण है ! और उस पर आपके द्वारा लिखी कविता बहुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह जाती है !
सूक्ष्म ही तो प्रवाहमान है
ReplyDeleteप्रियंका राठौर जी
ReplyDeleteनमस्कार !
यह होने न होने का क्रम,
सूक्ष्म से अति सूक्ष्म ,
दीर्घ से अति दीर्घ ,
क्षण में प्रवाहमान ,
लेकिन स्थायी कहीं -
अनंत से अधिक !!
बहुत दार्शनिक अंदाज़ में लिखी कविता है , बधाई !
आपके ब्लॉग की अन्य रचनाएं भी अच्छी हैं ।
शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
जो हूँ , वह नहीं हूँ ,
ReplyDeleteजो नहीं हूँ , वही हूँ !
यह होने ना होने का क्रम
अद्भुद है
प्रियंका जी कविता के साथ आपने जो तस्वीर लगाई है वह बहुत ही भावपूर्ण है छोटी सी नन्ही सी बच्ची आँखों में कुछ खुशियों के साथ हसरत भरी नजरे निहारती देखती और सिर पर गुजरात की कलाकारी किये हुए मटकी बहुत ही भावपूर्ण है ! और उस पर आपके द्वारा लिखी कविता बहुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह जाती है !
ReplyDeleteआप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद !
ReplyDeletebahut hi pravah purn likha hai
ReplyDeletebahut achha badhaye
अत्यंत मनन मोहक रचना
ReplyDeleteढेरों शुभकामनायें
रविश तिवारी
http://alfaazspecial.blogspot.com/
वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteआप बहुत अच्छा लिखती हैं और गहरा भी.
बधाई.