Wednesday, October 13, 2010

हमारे भीतर का दशानन

राम और रावण को धर्मग्रंथों ने भी क्रमश: अच्छाई और बुराई का प्रतीक माना है। जहा राम को हमारे समाज में मर्यादा पुरुषोत्तम का दर्जा हासिल है, वहीं रावण ऐसी बुराइयों का संगम है, जिसकी अच्छाइयां भी उसके तले दब जाती हैं। दशहरा या विजय पर्व हमें याद दिलाता है कि हम और हमारा समाज इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर मनाएं। इस पर्व के बहाने यह संदेश भी जाता है कि अंतत: बुराई की हार ही होती है। सत्य परेशान हो सकता है, किंतु पराजित नहीं। यह पर्व हमें एक मौका आत्ममंथन का भी देता है। अपने अंदर के रावण को पहचानने का मौका भी देता है।
रावण अर्थात बुराई। आज अगर हम अपने अंदर झाक कर देखें, तो हमारे भीतर भी रावण के दस सिर हैं। ये दस सिर हैं ईष्र्या, लोभ या लालच, क्रोध, अविवेक, भय, अनाचार, क्रूरता, मद, व्यामोह और संवेदनहीनता। जब-जब ये बुराइयां सिर उठाने लगती हैं, रावण प्रबल होने लगता है। हमें रावण के इन सभी सिरों का मर्दन करना होगा। तभी विजय पर्व सार्थक होगा। मजे की बात यह है कि रावण का प्रत्येक सिर अपने दूसरे सिर को प्रबल करता रहता है। जैसे ईष्र्या प्रबल हुई, तो व्यक्ति विवेक खोने लगता है। वह अनाचार और भ्रष्टाचार की ओर प्रवृत्त होने लगता है। ईष्र्या किसी भी इंसान के शात चित्त को अस्थिर कर देती है। परिवार में भी तनाव के हालात पैदा हो जाते हैं। अविवेक और क्रोध के कारण हम बिना विचारे कुछ भी कर बैठते हैं। संवेदनहीनता हमें अपराधों की ओर प्रवृत्त करती है। जल्द से जल्द सफलता की बुलंदी को हासिल करना भी इसी अविवेकी प्रवृत्ति का परिणाम है। ऐसा व्यक्ति अपने गुणों में अभिवृद्धि के प्रयासों को छोड़कर शॉर्ट कट तलाशता है। महात्वाकंक्षी होना गलत नहीं, लेकिन शॉर्ट कर्ट से सफलता की सीढि़यों पर चढ़ने की दौड़ इंसान के मन-मस्तिष्क से अच्छे-बुरे का भेद खत्म कर देती है। दशहरा और विजयपर्व के मौके पर अगर हम रावण के इन दस सिरों का मर्दन करके अपने भीतर के रावण का वध करें, तो न केवल हम एक बेहतर इंसान बन सकते हैं बल्कि एक बेहतर समाज और बेहतर राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान कर सकते हैं।






साभार : दैनिक जागरण

2 comments:

  1. वास्तव में दशहरा पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है हम हर वर्ष रावण के पुतले का दहन करते है उसे जलाते है परन्तु हर वर्ष रावण के पुतले का आकार बढ जाता है मुझे याद है की जब मै बहुत छोटा था तब हम लोग जब रावण दहन के लिए रावण मैदान में जाते थे उस समय रावण के पुतले का आकार सिर्फ 10 फीट हुवा करता था परन्तु रावण रूपी उस अहंकार के पुतले का आकार बड़कर 70 फीट हो गया लगता है दुनिया मै अहंकार और पाप भी इसी तरह साल दर साल बढ रहा है !

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  2. बात सही है, हर के अंदर बैठे रावण को अगर मार दिया जाये तो बेहतर सामाज और बेहतर राष्ट्र बन जाएगा, लेकिन उससे पहले हम खुद एक बेहतर इंसान बनेंगे...लेकिन ऐसा हो कब पाया है :(

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