दर्द की दवा प्रेम
प्रेम करने वाले दर्दे-दिल के गवाह हैं लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रेम दर्द का इलाज हो सकता है.
मस्तिष्क की बारीक़ी जांच से पता चलता है कि मस्तिष्क के जो हिस्से दर्द से निपटने के समय सक्रिय होते हैं वो प्रेम संबंधी विचारों के समय भी सक्रिय होते हैं.अमरीका के स्टेनफ़र्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 15 छात्रों को हल्का दर्द पहुंचाया और साथ ही ये देखा कि अपने प्रेमी या प्रेमिका की तस्वीर देखते हुए उनका ध्यान बंटा या नहीं.
उल्लेखनीय है कि ये अध्ययन उन लोगों पर किया गया जिनके प्रणय संबंध शुरुआती दौर में थे. इसलिए हो सकता है कि प्रेम की इस दवा का असर आगे चलकर बेअसर हो जाए.
प्रेम एक सशक्त भाव
जिन वैज्ञानिकों ने ये प्रयोग किया उन्होने मस्तिष्क के अलग अलग हिस्सों की गतिविधियों को मापने के लिए फ़ंक्शनल मैग्नेटिक रेज़ोनेंस इमेजिंग या एफ़एमआरआइ का इस्तेमाल किया.
विज्ञान जगत में ये बात जानी जाती है कि प्रेम की सशक्त भावनाएं मस्तिष्क के कई हिस्सों में गहन गतिविधि पैदा करती हैं.
इसमें मस्तिष्क के वो हिस्से भी शामिल हैं जो डोपेमाइन नामक रसायन पैदा करते हैं. इस रसायन से व्यक्ति अच्छा महसूस करता है. ये रसायन आमतौर पर मिठाई खाने के बाद या कोकेन जैसे मादक पदार्थ के सेवन के बाद पैदा होता है.
स्टेनफ़र्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि जब हमें दर्द की अनुभूति होती है तो हमारे मस्तिष्क के कुछ हिस्से गतिशील हो उठते हैं.
उन्होने ऐसे 15 छात्रों पर प्रयोग किया जिनका प्रणय संबंध को नौ महीने से अधिक नहीं हुए थे. इसे गहन प्रेम का पहला चरण माना जाता है.
"एक उदाहरण फ़ुटबॉल खिलाड़ी का दिया जा सकता है जो गंभीर चोट लगने के बावजूद खेलता रहता है क्योंकि वो भावात्मक आवेश की स्थिति में होता है. "
प्रोफ़ैसर पॉल गिल्बर्ट, स्नायुमनोवैज्ञानिक, डार्बी विश्वविद्यालय इंगलैंड
हर छात्र से अपने प्रेमी या प्रेमिका की तस्वीर और किसी परिचित व्यक्ति की फ़ोटो लाने को कहा गया.
उन्हे ये तस्वीरें दिखाते हुए उनकी हथेली में रखे गर्मी पैदा करने वाले पैड के ज़रिए हल्का दर्द पहुंचाया गया. इस पूरी प्रक्रिया के दौरान उनके मस्तिष्क का स्कैन किया गया.
स्कैन से पता चला कि उन्हे दर्द की अनुभूति अपने प्रेमी या प्रेमिका की तस्वीर देखते हुए कम हुई जबकि परिचित व्यक्ति की तस्वीर देखते हुए कुछ अधिक.
शोध में शामिल डॉ जेरैड यंगर का कहना है कि प्रेम कुछ उसी तरह काम करता है जैसे दर्द निवारक दवाएं काम करती हैं.
डार्बी विश्वविद्यालय के स्नायुमनोवैज्ञानिक प्रोफ़ैसर पॉल गिल्बर्ट का कहना है कि भावात्मक स्थिति और दर्द की अनुभूति के बीच ये संबंध स्पष्ट है.
उन्होने कहा, "एक उदाहरण फ़ुटबॉल खिलाड़ी का दिया जा सकता है जो गंभीर चोट लगने के बावजूद खेलता रहता है क्योंकि वो भावात्मक आवेश की स्थिति में होता है".
प्रोफ़ैसर गिल्बर्ट ने कहा, "ये बात समझनी ज़रूरी है कि अकेलापन और अवसाद के शिकार लोगों में दर्द झेलने की क्षमता भी बहुत कम होती है जबकि जो लोग सुरक्षित अनुभव करते हैं और जिन्हे भरपूर प्यार मिलता है वो अधिक दर्द बर्दाश्त कर सकते हैं ".
साभार : बी बी सी न्यूज़ (www.bbc.co.uk/hindi)
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