एक रिश्ता है अनजाना सा ,
जो परे है नाम से !
बांधा है ,
प्रीत की डोर से जिसने ,
बंधन स्नेह का ,
सब कुछ है -
फिर भी नहीं है कुछ !
डूबते उतराते भावों में ,
उलझनों का सैलाब है !
हाँ और ना के बीच
एक रिश्ता है
अनजाना सा .......
कोशिश ना की
हाँ में बदल जाती है ,
कोपल की डोर उसे ,
मजबूत बना जाती है !
भावों का गुंथन है ,
शब्द से परे है
पर -
एक रिश्ता है ,
अनजाना सा ,
जो परे है नाम से .......!!
प्रियंका राठौर
प्रियंका राठौर जी
ReplyDelete.शब्दों को चुन-चुन कर तराशा है आपने ...प्रशंसनीय रचना।
अहसासों का बहुत अच्छा संयोजन है ॰॰॰॰॰॰ दिल को छूती हैं पंक्तियां ॰॰॰॰ आपकी रचना की तारीफ को शब्दों के धागों में पिरोना मेरे लिये संभव नहीं
संजय भास्कर
सुन्दर भाव एवं बुनावट!!
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