'विचार प्रवाह'
Monday, October 18, 2010
जिन्दगी
टुकड़ों में बँटी जिन्दगी ,
गुजरे लम्हों को -
कभी रसोई में ,
कभी फर्श में,
तो कभी 'तुममें' तलाशती जिन्दगी !
यादों को जोड़ने की कोशिश
फिर भी दर्द के साथ
टुकड़ों में बँटी जिन्दगी ...........!!
प्रियंका राठौर
1 comment:
संजय भास्कर
October 18, 2010 at 10:15 PM
अरे वाह.. बहुत खूब... आपका लेखन शानदार है ...
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