Monday, October 11, 2010

"मैं"






जो हूँ , वह नहीं  हूँ ,
जो नहीं हूँ , वही  हूँ !
यह  होने ना होने का क्रम,
सूक्ष्म से अति  सूक्ष्म ,
दीर्घ से अति दीर्घ ,
छण में प्रवाहमान ,
लेकिन स्थायी कहीं -
अनंत से अधिक !!





प्रियंका राठौर

8 comments:

  1. सूक्ष्म ही तो प्रवाहमान है

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  2. प्रियंका राठौर जी
    नमस्कार !

    यह होने न होने का क्रम,
    सूक्ष्म से अति सूक्ष्म ,
    दीर्घ से अति दीर्घ ,
    क्षण में प्रवाहमान ,
    लेकिन स्थायी कहीं -
    अनंत से अधिक !!

    बहुत दार्शनिक अंदाज़ में लिखी कविता है , बधाई !

    आपके ब्लॉग की अन्य रचनाएं भी अच्छी हैं ।


    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  3. जो हूँ , वह नहीं हूँ ,
    जो नहीं हूँ , वही हूँ !
    यह होने ना होने का क्रम

    अद्भुद है

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  4. प्रियंका जी कविता के साथ आपने जो तस्वीर लगाई है वह बहुत ही भावपूर्ण है छोटी सी नन्ही सी बच्ची आँखों में कुछ खुशियों के साथ हसरत भरी नजरे निहारती देखती और सिर पर गुजरात की कलाकारी किये हुए मटकी बहुत ही भावपूर्ण है ! और उस पर आपके द्वारा लिखी कविता बहुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह जाती है !

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  5. आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद !

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  6. bahut hi pravah purn likha hai
    bahut achha badhaye

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  7. अत्यंत मनन मोहक रचना
    ढेरों शुभकामनायें

    रविश तिवारी

    http://alfaazspecial.blogspot.com/

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  8. वाह पहली बार पढ़ा आपको बहुत अच्छा लगा.
    आप बहुत अच्छा लिखती हैं और गहरा भी.
    बधाई.

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